हिन्दी नाटक - मटियाबुर्ज
हिन्दी नाटक - "मटियाबुर्ज"
लेखक - रियुनोसुके अकूतागावा
हिन्दी रुपान्तरण - रमेश चंद्र शाह
संगीत - अजय मुखर्जी
संगीत - अजय मुखर्जी
निर्देशक - सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ
प्रस्तुति - विनोद रस्तोगी स्मृति संस्थान
कथासार
रियुनोसुके अकूतोगावा की दो जापानी कहानियों का
संगम है, ये नाटक "मटियाबुर्ज" इस
नाटक का रुपांतरण रंगमंच के पूरोधा बी. वी. कारंत के आग्रह पर श्री रमेश चंद्र शाह
ने किया था और उन्होंने इसी कथा पर बनी अकीरा कुरोसावा निर्देशित मशहूर जापानी
फ़िल्म 'राशोमोन' को भी रचना के आधार में रखा।
नाटक
में सच और झूठ को नई परिभाषा दी गई है कि “सच तो जुगनू की तरह होता है जो अभी
दिखाई देता है और अभी आंखों से ओझल हो जाता है, तथा झूठ तो खटमल की तरह होता है जिसके साथ हम रोज़ सोते और जागते हैं|
अमीरों
पर कटाक्ष तथा गरीबों के प्रति सहानुभूति और संवेदना भरे शब्द ये सोचने पर मजबूर
कर देते हैं कि भूख से मर जाना ही एक रास्ता है या छोटी-मोटी चोरी, बेईमानी का रास्ता पकड़कर जिंदा रहने
की जद्दो-जहद करना।
नाटक
आरंभ होता है एक बलात्कार और एक हत्या के बाद जिसमें सभी गवाह अपने-अपने अनुकूल सच
बोलते हैं तथा शेष छिपा जाते हैं। इस तरह हर बयान से कथा को एक नया आयाम मिलता है।
खंडहर
हो रहे मटियाबुर्ज पर तीनों पात्रों की उपस्थिति से आरंभ होने वाले नाटक में
कल्पना से आने वाले पात्र अलग-अलग रंग भरते हैं और हर दृश्य के बाद हत्या की
गुत्थी और उलझती जाती है,
कारण.... लोग उतना ही बताते हैं जितना
वो बताना चाहते हैं .... यानी अर्धसत्य।
झूठ, फरेब, चोरी, हत्या, बलात्कार के बावजूद एक नई आशा का संचार और जीवन जीने
की आकंक्षा एक सुखद अनुभूति प्रदान करती है और
मटियाबुर्ज के खंडहर से ही नव सृजन का संदेश भी प्राप्त होता है, तमाम
अनुत्तरित प्रश्नों के बीच।Video Link - https://youtu.be/YlQlYUfgs9o
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