हिन्दी नाटक - "सूतपुत्र"
हिन्दी नाटक - "सूतपुत्र"
आलेख - विनोद रस्तोगी
संगीत, परिकल्पना एवं निर्देशन - अजय मुखर्जी
प्रस्तुति - विनोद रस्तोगी स्मृति संस्थान
कथासार
महाभारत की कथा से कौन परिचित नहीं है , फिर भी इस महासागर से एक मोती को चुनकर विनोद रस्तोगी जी ने रच डाला एक काव्य नाटक " सूतपुत्र " महाबली श्रेष्ठ धनुर्धर एवं दानवीर कर्ण की कथा को कुछ इस तरह प्रस्तुत किया है लेखक ने कि उसकी वीरता के साथ ही उसके अंतर्द्वद्व एवं हृदय की वेदना को भी प्रकाश में लाया जा सके । एक सूतपुत्र को समाज में क्या - क्या झेलना पड़ता है इसे बड़ी गंभीरता से वर्णित किया गया है ।
कर्ण की कथा के माध्यम से एक प्रयोगात्मक रंग प्रस्तुति द्वारा सूतपुत्रों की दशा पर रंगचर्चा आवश्यक है आज । आज भी द्रोणाचार्यों , राजपुत्रों तथा परशुरामों द्वारा उपेक्षित होकर युवा , दर्योधनों की शरण में जाने को विवश हैं और यही दर्शाने का प्रयास है नाटक " सूतपुत्र " ।
वैसे तो ये कथा द्वापर युग की है पर स्थितियाँ कमोवेश वैसी ही हैं आज कलयुग में भी या यूँ कहें कि वो और विकराल रुप से विद्यमान है समाज में । कर्ण को अंतिम समय में कृष्ण और अर्जुन द्वारा सम्मान देना ये दर्शाता है कि सामाजिक ढांचे में बदलाव की गुंजाइश हर युग में होती है वो चाहे द्वापर हो या कलयुग ।
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